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कश्मीर मुद्दे पर भारत सरकार की उदासीनता एक चिंता विषय

HALLABOL
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पिछले लगातार दो महीनो से कश्मीर और घाटी में हो रहे लगातार हिंसक और भारत विरोधी आन्दोलनों ने एक बार फिर से कश्मीर मुद्दे को हवा दी है I लगातार मिल रहे अलगाववादी नेताओ के समर्थन के चलते कुछ असामाजिक तत्वों को भारत के खिलाफ बोलने के लिए एक और मौका मिला है I लगातार भड़क रही हिंसा के चलते कश्मीर में जो अमन शांति वापिस आ रही थी और जो सौहार्द का एक माहौल बना था उसपे एक और संकट इस हिंसा ने लगा दिया है I कुछ मुट्ठीभर असामाजिक तत्वों ने कश्मीर और घाटी प्रदेश पर कब्ज़ा जमा लिया है और हमारा प्रशाशन मूक प्रेक्षक बनके इस घटनाओ को अनदेखा कर रहा है I चाहे राज्य की ओमर सरकार हो या दिल्ही की कांग्रेस दोनों सरकार चुप है I और हद तो तब होती है जब अलगाववादी नेता दिल्ही आ कर वह आम सभा में भारत के खिलाफ बयानबाजी करते है I उनके इस भाषण का जब भाजपा की युवा शाखा ने जब विरोध किया तो पुलिस ने उस नेता के खिलाफ कार्यवाही करने की वजह उल्टा इन प्रदशनकारीओ को मारा I धन्य है केंद्र सरकार को जब कश्मीर मुद्दा इतना जरुरी है उसपे चर्चा करने की वजह आज भी कांग्रेस और उसके युवराज संघ परिवार को आतंकवादी करार देने में, राष्ट्र मंडल खेलो में घपले में से अपने नेता को बचाने में और कर्नाटक में स्थिर सरकार को अस्तव्यस्त करने में जुटी हुई है और इतना नहीं अपनी पूरी सेना को इन सब के पीछे लगा दिया है I

अफ़सोस इस बात का है की जब सरदार यानि श्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने जब उस समय के कश्मीर के रजा हरिश्चन्द्र के कहने पर सेना भेजी थी और जब पुरे कश्मीर को भारत का एक अभिन्न अंग माना था तब से कश्मीर भारत का ही एक राज्य है I लेकिन १९५२ में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु ने इस मुद्दे को अन्दर ही अन्दर सुल्जाने की जगह संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को लेकर गए और तब से यह भारत – पाकिस्तान का आपसी मुद्दा न रह कर एक अंतराष्ट्रीय मुद्दा बन गया और हर किसी को इस मुद्दे में दखल देने का अधिकार प्राप्त मिला I तभी संयुक्त राष्ट्र का एक छोटा सा देश यानि कलसे बंगलादेश और नेपाल या अन्य कोई भी देश इस मामले में अपनी टांग अडा सकता है और हमे इनकी बातो को मानना होगा I क्यूंकि हमी ने इसे संयुक्त राष्ट्र लेजाकर जो अपने पावो में कुल्हाड़ी मरी है इसका यही हाल होना था I

योगनुयोग आज भी केंद्र में यही कांग्रेस की सरकार है जो इस मुद्दे के प्रति इतनी उत्सुक नहीं है और जाने अनजाने इनकी इसी बेवकूफी भरी बातो और अनदेखी से अलगाववादी नेताओ को बल मिला है और वोह लोगो को भारत के खिलाफ बयानबाजी और प्रदशन के लिए उकसाते है I इसका खामियाजा जम्मू और कश्मीर के आम नागरिक को उठाना पड़ता है I चंद अलगाववादी नेता आग में घी डालने का काम कर रहे है I
केंद्र की सरकार ने तीन समाजसेवी बुद्धिजीवो की एक टीम बनाकर उसे कश्मीर भेजा है इन प्रदशनकारीओ के साथ वार्तालाप करने को भेजा है I इसमें एक पत्रकार है, एक महाविद्यालय की शिक्षिका है और एक प्रसारमाध्यम के उच्च सचीव् है I यह दल सभी उन नेताओ से मिलेगे जो भारत के खिलाफ की सोच रखते है और कभी भी जम्मू और कश्मीर में शांति बहाल हो ऐसा नहीं चाहते I

हकीकत में हमने कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा देकर ही हमने गलती की है I अगर कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा न दिया होता तो आज इतना बवाल जम्मू और कश्मीर पे न होता I हमने जम्मू और कश्मीर को एक विशेष दर्जा देकर अन्तराष्ट्रीय समुदाय के सामने जाने अनजाने में यह मान लिया है या सबको मानने के लिए एक मौका दिया है की जम्मू और कश्मीर की सरहद भले ही भारत से जुडी हो लेकिन वोह सम्पूर्ण तौर पर भारत का अभिन्न अंग नहीं है I भारत के आम राज्यों की तरह जम्मू कश्मीर नहीं है I और आयेदिन इस तरह के आन्दोलनों के चलते कश्मीर और घाटी में अशांति का माहौल है I और चंद अलगाववादी नेताओ को हमारी सरकार से मिल रहे आदरभाव के चलते कश्मीर मुद्दा नजदीकी समय में हल हो ऐसा मुमकिन नहीं लगता I

एक मामले में में अडोल्फ़ हिटलर की प्रशंशा करता हु और वोह है अपने राष्ट्र यानि जर्मनी के लिए उसके प्रेम और वफादारी को सलाम करता हु I उसने अपने राष्ट्र के लिए अपने देश के खिलाफ के हर उस शख्स और तत्व को ख़तम कर दिया जो उसे असामाजिक लगे थे I उसके कत्ले आम की में तारीफ नहीं कर रहा लेकिन उसके राष्ट्र प्रेम को हम अन्देखाभी नहीं कर सकते I लेकिन भारत में झूठी बिन्संप्रदयिकता और चंद मतों के तुष्टिकरण के लिए भारत सरकार हर ऐसे तत्व को भी बचाती है जो देश की सुरक्षा और शांति के लिए खतरा है I ऐसे तत्वों को भी सुरक्षा मुहैया करवाई जाती है और उनमे इतनी हिम्मत आ जाती है जो भारत की राजधानी में आकर भारत के खिलाफ भाषण दे इ

अगर जम्मू कश्मीर को वाकई में भारत के साथ बनाये रखना है तो हमे सबसे पहले उसको दिए गए विशेष दर्जे को ख़तम करना होगा I लोगो को रोजगारी और जरुरी सुविधाए मुहैया करवानी होगी I लोगो में भारत के प्रति एक आदरभाव जगे ऐसा माहौल बनाना होगा I और हर उस अलगाववादी नेता और उसकी सोच का समर्थन कर रहे चंद लोगो को खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी होगी I सख्त कार्यवाही से मतलब है की उन्हें जड़ से ही उखड फैकना होगा I तभी भारत में शांति हो सकेगी I जम्मू कश्मीर भारत का ही एक अंग है कोई सौतेला नहीं I

अंत में केंद्र सरकार से निवेदन है की वोह राजनीती से ऊपर उठकर थोडा राष्ट्र के प्रति भी सोचे I अलगाववादी अड़ियल नेताओ से बात चित की जगह वह के आम नागरिक की परेशानियों को समजे और उसे सुल्जाये ताकि वहा के लोगो के मन में भारत के प्रति एक आदरभाव जगे और वोह भारत का सम्मान करे I केंद्र सरकार से निवेदन है की गुजरात के नेताओ को कोसना, कर्नाटक में जुट मुठ का संकट खड़ा कर वह सरकार बनाने के सपने को देखना बंद करे I और खामखा ही संघ परिवार को आतंकवादी करार देने को भी बंध करे I

नतीजे आपके सामने ही है I गुजरात की जनता नें तो आप यानि केंद्र यानि कांग्रेस सरकार से भरोसा खो दिया है तभी महानगर पालिका, ग्राम्य एवम जिला परिषदों के चुनाव में बता दिया की कौन बेहतर है गुजरात के लिए और किसने कितना विकास किया एवम आतंकवाद का मुकाबला किया I अभी भी वक़्त है सुधर जाओ और थोडा महंगाई, आतंकवाद और कश्मीर पर ध्यान दो वरना अब तो चाइना भी पाकिस्तान हस्तगत कश्मीर में दाखिल हो चूका है और एक और मोर्चा खोल दिया है I हमारी सरकार के कानो में जू भी नहीं रेंगती इसी लिए वोह खुद हस्तक्षेप करने की जगह अन्य अधिकारिओ की टीम बनाकर वार्तालाप कर सकती है I

यह अलगाववादी नेता एक ही भाषा समजते है और वोह है हिंसा और आन्दोलनों की I उनको उन्ही की भाषा में समजना जरुरी है I जैसे लातो के भुत बातो से नहीं मानते वैसे आतंकी लोग आतंक की भाषा को ही जानते है उन्हें सम्मान की नहीं कड़ी से कड़ी सजा की जरुरत है ताकि वोह दूसरी बार अपने सामने देखने या कुछ करने से पहले हजार बार सोचे I इसका एक सचोट उदहारण इसराइल है जिसने अकेले ही अपने दुश्मनों के दांतों को खट्टा किया है I

जैसे महाभारत में कहावत है की प्रतिशोध की आग में जल रहे अपने दुश्मन को एक और मौका देने की वजह या उसके वार करने तक का इन्तेजार करने की वजह उसे पहले ही ख़त्म कर देना चाहिए I मुझे पता है कुछ अहिंसा पसंद लोगो को यह बात राज नहीं आयेगी लेकिन आज के युग में हिंसा का जवाब सिर्फ हिंसा हो सकता है शांति वार्ता नहीं I एक बार अपनी ताकत का प्रदशन दुनिया के सामने करने दो बादमे देखो कौन हिम्मत करता है आपके सामने ऊँगली या आंख उठाने की I इसकी मिसाल अमेरिका और इसराइल है I

अगर इस मुद्दे पर चाहिए तो देश का हरेक नौजवान तैयार है अपना योगदान देने को लेकिन पहेल सरकार को करनी होगी वरना कश्मीर को एक बार फिर से बाटना पड़ेगा I समजदार को सिर्फ इशारा ही काफी है की मौजूदा हालत से कैसे निपटना चाहिए I जवाब है उन्ही की तकरीब उनपे आजमी जाये I ऐसा सरकार करती है तो हम सब आपके साथ है लेकिन क्या हमारी केंद्र सरकार में इतनी हिम्मत है ? सोचो और जवाब मिले तो मुझे जरुर बताना I

जय हिंद
गौरव पाठक

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