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हाय रे किसान तेरी बदकिस्मती देख भगवन रोया

HALLABOL
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किसान तू है जगत का तात, देता है पोषण तू सबको,
बिना तेरी मेहनत को न मिलता अन्न हमे I
निस्वार्थ हो के तू निशदिन करता है मेहनत खेतो में,
भूख प्यास का ख्याल नहीं तुझको न ख्याल है तुज्को मौसम का I
धुप भी तुझको झुलसा न सकती, न ठंडी तुझको रोकती,
मेहनत का झ्ज्बा जो है तुजमे उसको भगवन भी न हिला सकता I
खून पसीना बहाकर तू पैदा करता कच्चा सोना, जिसको सब है अन्न कहते,
और मिलता पोषण हम सबको I
तेरा भी वो जमाना था जब मिलती थी तुझको इज्जत,
आज देख के हालत तेरी देख रोया है भगवन I
मुड़ीवाद की दौड़ में आज भूली सरकार है तुझको,
सोने जैसी जमीन छिनी तुजसे छिना है तुजसे तेरा घर I
छीने तुजसे तेरे अधिकार किया है तेरा अपमान,
कौड़ी के दम तुजसे ख़रीदा अन्न बेचा सोने के दाम I
काले बाजारी की दौड़ में सरकार भूली तेरा अधिकार,
मेहनत के सामने मिला तुझको बस बेबसी का पुरस्कार I
तेरी जान की कोई कीमत नहीं अब तू बना बोज शाशक पर,
इसी लिए खुदखुशी पर तेरी सजा है राजनीती का माहोल I
तेरे मरने का किसी को गम नहीं न ही है किसी को कोई मवाल,
अपनी अपनी जेबे भरने में लगे है नेता तेरे उगाये अन्न से आज I
तेरे ही परिवार के लोग बिलखते है दो वक़्त की रोटी को,
कैसी यह दुर्दशा है तेरी भगवन भी रोया तेरी बदकिस्मती पर I
इस देश में अब न रहा तेरा कोई न है किसी को कोई परवाह तेरी,
एक तुही है जो कर्तव्यवन बनकर करता है सेवा हमारी I
पर आज तेरी किस्मत है जूठी जूता हुआ है नेता का वडा,
कुदरत भी रूठी रूठा है संसार न राजी हुई बरखा रानी I
तेरी सहायता को नेता खाते भरते है अपनी जेबे,
सूखे के नाम पर जुटते पैसे करते अय्याशी उससे I
कौन कहता है भारत है कृषि प्रधान कृषि है सही व्यवसाय,
मुड़ीवाद की दौड़ में भूले है कृषि को हम आज I
किसान बना और भी दरिद्र दरिद्रता का हुआ वास,
किसान तेरी बदकिस्मती पर देख रोया है भगवन आज I

गौरव पाठक

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