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आक्रोश

HALLABOL
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आक्रोश है छुपा है आज हर जन के मन में,
दबा दबा बन रहा है ज्वाला आज यह I
मुसीबत के सामने खड़ा हुआ है आम जन,
लगाये आस बैठा है यह हुआ यह निराश I
मन था जिसको इसने अपना सौपी थी,
जिसको सत्ता की डोर I
बना है अनजाना आज वही स्वजन,
बैठा है दूर डेल्ही में वोह I
न है उसको फ़िक्र अपने जन की,
न है फ़िक्र उसको अपने वतन की,
फ़िक्र है उसको तो सिर्फ दो चीज की,
एक अपने प्राण की दूजे अपने धन की I
जन की भूख का जिक्र नहीं, उनके प्राण की फ़िक्र नहीं,
आम जन की कीमत नहीं,चुनाव अभी नजदीक नहीं I
दामो में कोई कमी नहीं, खाने को रोटी नहीं,
रहने को छत नहीं, ओढने को ढंग का कपडा नहीं I
फटे हल किसान है, बेहाल आम इन्सान है,
आय में कोई वृद्धि नहीं और नेता जी को समय नहीं I
हमारी आवाज की कोई फ़िक्र नहीं, मुसीबत का जिक्र नहीं,
संसंद में खेले व्यर्थ कोमवाद,जातिवाद और पक्ष्वाद के मुद्दे,
समाजवाद का कोई जिक्र नहीं I
जनता चुप बेठी है सह कर सारे जुल्म को अपने पे,
दबा है आक्रोश मन के कोने, बैठा है छुपकर चिंगारी बनके,
व्यर्थ ही न इसको बढाओ इसको मत दो इसको ज्वाला का रूप,
जला के रख न करदे तुम्हारी शख्शिअत जान लो तुम इ नेतालोग I
मत समजो जनता को उल्लू मत समजो इसको लाचार,
लोकशाही में जनमत ही सत्ता का आधार मत समजो इसको निराधार I
मत भूलो जनता के आक्रोश को छुपा हुआ जो मन में,
बारूद बन के फटेगा तुम पे हो जाओगे जल के खाक I
आक्रोश को ऐ जनता संभल कर रखना मत बताना अभी तुम,
बनाना इसको तुम हथियार दिखाना चुनाव में इसको I
अपने में से ही किसी आमजन को चुनना देना लायकी को वोट,
कोमवाद,जातिवाद,परिवारवाद को भूलकर देना सही को वोट I

गौरव पाठक

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