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खून से सजी है आज जमीन, खून से सजे है हाथ,
मुर्दों के गढ़ के ऊपर सजा है आज सरताज I
सजी है खुर्सी मुर्दागर में लगे है नेता नोचने मॉस,
आज की यह राजनीत बनी है रक्त्चारित राजनीत I
स्वार्थ को पाने अपने को नेता बने है शैतान,
राम रहीम के नाम पर खेला है उन्होंने जुगार I
बैर बढाया अपनों के बीच बोया बीज शंका का,
कोमवाद के नाम पर बस बनाया जनमत अपना I
भूख के आगे क्रिकेट है जीता, महंगाई के आगे नीजी स्वार्थ,
जनता से बढ़कर ऊँचा है पैसा जिंदगी से आगे अपना हित I
जनता के जान की कोई कीमत नहीं, नहीं कीमत है जनमत की,
इस बिकाऊ धरती पर मिलती है खुर्शी भी दामो से I
सच्चा रोया, कर्मनिष्ठ रोया रोया है समाजवादी,
नहीं रोया तो सिर्फ नेता न रोया रक्त से ही रचित है राजनीत I
बुझती नहीं प्यास पानी से शराब से भी बुझती नहीं,
बुझती है प्यास सिर्फ खून से जनता के यही है रक्तचरित राजनीत I
मुर्दों के बीच बसे है यह गिद्ध नहीं बची नहीं है लाज,
रक्त से लिप्त है आज की राजनीत रक्तरचित है राजनीत I
गौरव पाठक
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