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एक आम आदमी की आत्मकथा

HALLABOL
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में एक आम आदमी हु I आज़ाद भारत में बसनेवाला और रामराज्य जैसे ख्वाहिश रखनेवाला आम आदमी I जिसे न हीरे मोती ना ही बेशुमार धनदौलत की ख्वाहिश है I ख्वाहिश है तो अपने परिवार का गुजरान चला सके और अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलवा सके उतना कमाने की ख्वाहिश रखनेवाला I और अपने भगवन एवम भाग्य पे भरोसा रखनेवाला एक आम आदमी I

लेकिन में सदियों से ही दबता कुचलता आया हु I पहले हमे मुघलो ने कुचला बाद में अंग्रेजो ने और मुश्किल से आज़ादी मिली तो अब खादीधारी नेता लोग लूट रहे है I कभी मुझे धर्म के नाम पर तो कभी जातपात के नाम पर कभी आरक्षण के नाम पर आये दिन मुज पर अत्याचार हो रहा है I जन्मते ही मुजपर आमआदमी का सिक्का लग जाता है I जिसे एक बात का ही ध्यान रखना होता है की वोह सबकुछ चुपचाप सहन करे और कभी कुछ कहनेका प्रयत्न किया तो उसे दमन से रोक दिया गया I मैंने मुश्किल से सिक्षा प्राप्त की I जो सिक्षा मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है उसके लिए मुझे धन देना पड़ा I जैसे तैसे मैंने अपनी सिक्षा पूरी की तो नौकरी के लिए यहाँ वह भटकना पड़ा I जब नौकरी मिली तो वह पर भी स्थिति कोई अच्छी नहीं थी I जैसे तैसे मैंने नौकरी में अपना सिक्का जमाया और शादी करके अपना घर बसाया I वोह तो अच्छा हो दादाजी का की उन्होंने पहले ही घर खरीद लिया था वरना आज के ज़माने के खुदका घर एक सपना ही है I

लेकिन भाई साहब क्या बताऊ आज के हालत पे मुझे अपने आप पर तरस आरही है I क्या यह वही भारत देश है जिसको गांधीजी एक रामराज्य बनाकर पुरे विश्व के सामने रखना चाहते थे? जहा पर सबके लिए एक सामान कानून और न्याय एवम एक सामान स्थान की बात की गयी थी? आज इसी समाज मतलब देश में नेता लोग जात पात और आरक्षण के नाम पर लोगो को अन्दरोंदर लड़ा रहे है और अपने वोटो की राजनीती कर रहे है I महंगाई के मुद्दे को भुलाकर सरकार और उनके नेताओ को क्रिकेट और दुसरे प्रगतिशील राज्यों के नेताओ को जुठेमुठे कानूनी मामलो में फसकर अपने अधिपत्य को ज़माने में ही दिलचस्पी है I मेरी गरज तो सिर्फ आम चुनाव और अन्य स्थानीय चुनाव के लिए ही है I मेरी सुरक्षा की किसीको न फिकर है इसीलिए अपनी सुरक्षा के लिए नेता पूरी सेना के साथ चलते है और में लावारिस जानवर की तरह यहाँ वह मरने के लिए घूमता हु I क्या करू अगर बहार नहीं जाऊगा तो घर का खर्च इस महंगाई में कैसा पूरा कर सकता हु? मेरे नेता तो व्यस्त है सोने में I उनको न मेरी फिकर है न चिंता इसीलिए महंगाई,बेरोजगारी और आतंकवाद जैसे मुद्दे को छोड़ सरकार आपराधिक लोगो के हुए एन्काउन्टर, क्रिकेट और अपनी जूठी तारीफों में ही समय गुजर रही है I पता है की अभी चुनाव दूर है और जनता की याददाश्त कम है I

में तो अभी मर चूका हु I बस मेरी आत्मा यह सब देख रही है I जीना भी अब तो बोजल हो गया है I मैंने बहोत सहन किया लेकिन अंत में मेरी सहनशक्ति दगा दे गयी और मैंने अपने आपको ख़तम कर दिया I क्यूंकि क्या करू इस देश में मेरी आवाज़ सुनाने वाला कौन है?जब भी कुछ होता है नेता लोग TV या अन्य किसी माध्यम से अपने बयान देकर अपनी जिम्मेदारी ख़त्म हो गयी ऐसा मानते है I अरे नेताजी किसी गरीब के घर एक रात गुजरने से या किसी एक कलावती के दुःख दूर करने से काम नहीं बनता I जरूरत है ऐसे कई कलावती और ऐसे कई गरीब है जिनको दो वक़्त की रोटी मिले उसमे दिलचस्पी है न की किसी सोहराबुद्दीन एन्काउन्टर या किसी अन्य गुनेह्गर के हत्या के पीछे कौन था उसमे I

मेरे देश में काला बाजारी, गुनेहगार और अन्य सभी असामाजिक तत्व सुखी है और आमआदमी के हाल बेहाल है I एक तरफ अनाज कालाबाजारियो के गोदामों में साद रहा है और देश का आमआदमी उसी अनाज के लिए तरस रहा है I हाय रे मेरी किस्मत आज़ादी के बाद भी यह हाल रहना था तो फिर गुलामी क्या बुरी थी? खेर में तो इस दुनिया को छोड़ चूका हु पर आपके बारे में सोचकर मर कर भी जिन्दा हु I आखिर कब तक में चुप रहूगा?कब तक अन्याय को सहन कर सकुगा? ऐसे अन्याय सहन करना भी एक गुनाह है तो फिर क्यूँ न कुछ कर कर ही गुनेह्गर बनू ताकि इन को भी पता चले की आमआदमी की ताकत क्या है और क्या होता है जब वोह जाग जाता है I बस जरुरत है मुझे मेरे जैसे आमआदमी को एक करने की और उन्हें एक धागे में पिरोने की I आओ आमआदमी एक हो जाओ और सरकार को जड़ से उखाड़ो I

जय हिंद I
गौरव पाठक

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