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हमे याद न तेरी आई, की हाय फिरसे बढ़ी यह महंगाई की जनता मर ही गयी

HALLABOL
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अब तो वाकई में जनता की हालत ऐसी हो गयी है की अब करे तो क्या करे I खाना खायेगे तो उसको पकाने के लिए जरुरत में पड़नेवाला राशन दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है और ऊपर से कम हो आज फिर सरकार ने पेट्रोल, डीज़ल और गैस के दाम बढ़ा दिए है I यानी अब जनता तैयार रहे एक और महंगाई के झटके को सहने I अब तो लगता है शाशक, विपक्ष और अपने आप को समाज का हितैषी कहनेवाले साम्यवादी सब एक हो गए है और जनता का खून चूसने में लगे है I किसी को बढती महंगाई पे चिंता नहीं लेकिन आईपीएल, कसब की फांसी जैसी बातो की पड़ी है I यहाँ लोगो को रोज की जरुरत में आनेवाले सामन के दाम दिन प्रतिदिन ऐसे बढ़ रहे है की अब वोह दिन दूर नहीं जब दूध ५०/- लीटर, शक्कर १००/- किलो आलू ४०/- प्याज तो शायद हम खरीद ही नहीं पायेगे और फल फल को सिर्फ हम दुकानों में देख के खुश होते रहेगे I मतलब खाना और महंगा होगा कुछ और चीजे हमारी थाली से दूर होगी और जो लोग इस परिस्थिति को झेल नहीं पायेगे और या तो अकेले या पुरे परिवार के साथ खुदखुशी करने लगेगे I एक तरफ लोगो की नौकरिया इस आर्थिक मंदी के दौर में जा रही है दूसरी महंगाई मतलब लोगो की खरीद शक्ति कम हुई है अभी बाजार में पैसे की तरलता ज्यादा है फिर भी महंगाई बढ़ रही है I वाकई में सरकार की अंधाधुंध वितरण निति इसके लिए जिम्मेदार है I

एक तरफ सरकारी गोदामों में अनाज सड़ता है दूसरी तरफ वोह सामान काले बाजार दुगने दामो से बिक रहा है I अनाज एवम अन्य चीजो की खुल कर कला बाजारी हो रही है न कोई रोकनेवाला न कोई टोकनेवाला क्यूंकि, “जब सिया भये कोतवाल अब डर कहे का” सच में अपने आप को आम जनता की सरकार कहनेवाले लोग अब कहा चुप गए है I जब देश के दो दो अर्थशास्त्री एक ही जगह है और उनकी सत्ता है फिर भी महंगाई क्यों बढ़ रही है?क्यूँ वाकई में कुछ चीजो के दामो को सरकार नियंत्रित नहीं करती? जो चीजे लोगो को रोजिंदा जीवन के लिए जरूरी है उसके दामो को क्यूँ बढ़ने से नहीं रोका जा रहा? क्या सरकार भी इस कला बाजारी में शामिल है ? ख़ामोशी से ऐसा ही लग रहा है I सरकार खामोश है और कालेबजारिवाले खुश है I

इसके लिए हम जनता भी कसूरवार है क्यूंकि हम महंगाई के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा रहे I मानता हु की हमे इस महंगाई के वक़्त में अपने परिवार के लिए ज्यादा कमाई करनी होती है तभी हम २ वक़्त की रोटी का इन्तेजाम कर पाते है I लेकिन हमारे पास छुट्टी का दिन यानी रविवार है I हर नागरिक को इस महंगाई के सामने आवाज़ उठानी चाहिए हर जिल्ले में या राज्य कक्षातक धरने देकर इसके खिलाफ आवाज़ उठाये I वाकई में एक जल्द आन्दोलन की जरुरत है I इस वक़्त में हमे उन पुराने नेताओ की याद आ रही है जो लोगो के लिए धरने करते थे आज के नेता राम ही राखे I

वाकई में ऐसे में मैंने एक कविता बनायीं है की,

“मुझे याद न तेरी आई,
की हाय बढ़ ही गयी महंगाई,
की जनता मर ही गयी I
अभी चुनावो को है देरी,
की जनता अपनी है इतनी भोली,
की भूल ही जायेगी यह महंगाई,
की जनता मर ही गयी I
चाहे पिए न दूध बच्चे,
न मिले चाय में शक्कर,
अच्छा है कम हो गी बीमारी,
की जनता मर ही गयी I
खाने में न हो तरकारी,
की अब तो दाल ही हो गयी महंगी,
अब तो चटनी रोटी खाओ,
की जनता मर ही गयी I
राशन की है लम्बी लाइन,
न रही है नौकरी सलामत,
पर रखनी खुर्शी सलामत,
इसीलिए बधादी यह महंगाई,
की जनता मर ही गयी I
वादे किये थे सारे, जब आये थे चुनाव हमारे,
महंगाई को रोकने के वादे, पर जब बात आई हमारी,
हमे याद ना तेरी आई,
की हाय फिरसे बढ़ी यह महंगाई,
की जनता मर ही गयी I
अभी हमे न जनता जगाओ,
की हम सो रहे है हमे न उठाओ,
महंगाई हमे नहीं लगती,
हम को न यह रुलाती,
की जनता मर ही गयी I
आपने ही दी है हमे सत्ता,
अब बढ़ी यह महंगाई,
तो भाई इतनी क्यूँ है भेजामारी,
की आखिर फिर से बढ़ी यह महंगाई,
की जनता मर ही गयी I

वाकई में हम लोगो की इसी बात का फायदा कुछ लोग उठा रहे है और हमारा खून चूसते रहते है I वाकई में हमे कुछ करना होगा वरना दिन प्रति दिन महंगाई सारे रिकॉर्ड तोडती जायेगी और हम इसी तरह सरकार को कोसते रहेगे और सरकार मजबूरी का नाम लेके ऐसे ही कला बाजारियो को फायदा कराती रहेगी I

जय हिंद

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