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प्रादेशिक पक्षों की राष्ट्रीय राजनीती में हिस्सेदारी: ईमानदारी कम हिस्सेदारी ज्यादा

HALLABOL
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भारत एक लोकशाही देश है जहा लोगो को अपनी मनपसंद सरकार चुनने का अधिकार है I और कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है एवम अपनी खुदकी राजनीतिक पार्टी भी बना सकता है इसीलिए भारत के चुनाव आयोग के पास कई पार्टिया संलग्न है उसमे कुछ राष्ट्रीय, कुछ प्रादेशिक और बाकि स्वंतत्र पार्टिया है I भारत के संविधान में किसी को भी अपनी नयी पार्टी बनाने का हक होने की वजह से आज भारत में किसी अन्य लोकशाही देश के मुकाबले कई ज्यादा पार्टिया है I

भारत में आजादी के पहले कांग्रेस ही एक लौटी पार्टी थी I उसके बाद १९५२ में भारतीय जन संघ और साम्यवादी पक्ष आये I बाद में जनतादल जैसी पार्टी आई I जनतादल के आज कई हिस्से हो चुके है जिसको हम बीजू जनता दल, जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल, समता पार्टी, समाजवादी पार्टी जैसे कई पार्टियो में विभाजन हो गया और जनतादल कही खो गया I कांग्रेस के भी कुछ असंतुष्टो ने अलग जाकर राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी जिसको ऍनसीपी से जानते है वोह पार्टी आई I यह सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर जो पक्ष है उनकी बात है बाकी हर एक प्रदेश में उसकी अलग से प्रादेशिक पार्टी अलग से है I मतलब भारत के चुनाव आयोग को जब भी आम या विधान सभा चुनाव होता है उनको वोटिंग मशीन पे तकरीबन ५० या १०० के बीच में पार्टी चिन्ह एवम उम्मीदवार के नाम लिखने रहते है जो वाकई में एक महंगा एवम कठिन कार्य है इ I

अब बात अमेरिका की I अमेरिका में सिर्फ ३ पक्ष है I डेमोक्रेटिक पार्टी, रिपब्लिकपार्टी एवम लेबर पार्टी जैसे पक्ष है I इंग्लैंड में भी ३ या ४ पार्टी है I तो इसका मतलब क्या की वोह देशो में लोकशाही नहीं है ? वह के लोगो को अपनी मन पसंद सरकार चुनने का अधिकार नहीं है ? लोकशाही देश में ज्यादा राजनीतिक पक्ष होना जरुरी है ?

सच तो यह है की भारत में भी सिर्फ ३ पक्ष कांग्रेस, बीजेपी और साम्यवादी इन तीनो को ही मंजूरी देनी चाहिए I बाकी जितनी भी पार्टिया है उनका इन तीनो में विलीनीकरण कर देना चाहिए I अन्य सभी पार्टियो को जिस पार्टी से उसकी विचारधारा मिलती है उसमे उसका विलीनीकरण कर देना चाहिए I इसके लिए सबसे आचा उदाहरन राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी है जिसको शरद पवार ने इसलिए अलग बनाया था को वोह कांग्रेस में एक विदेशी को नहीं सह सकते लेकिन आज वोह खुद उनको समर्थन दे रही है I जो विदेशी मूल का मुद्दा था वोह तो ख़तम हो गया फिर कांग्रेस से अलग रहने का मतलब क्या ? उसका उसमे विलीनीकरण करके चुनाव योग का काम कम कीजिये? ऐसी कई पार्टिया बनी है जो छोटे छोटे मतभेदों के कारन अलग से बनायीं है जिन्होंने बाद में उसी पक्ष को सत्ता में आने के लिए समर्थन दिया है जिनसे वोह अलग हुई थी फिर जुदा होने का कारन क्या और अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बनाने का क्या मतलब जब उसी पार्टी से हाथ मिलकर सत्ता में भागीदार बनने का ?

सच में यह जितनी भी पार्टिया है सभी पार्टिया कुछ प्रदेश तक ही सिमित है I उनको स्थानिक जाती के लोगो का समर्थन होता है जिसके बलबूते पर यह लोग उछलते कूदते रहते है और समर्थन के नाम पर राष्ट्रीय पक्षों को आये दिन समर्थन वापिस लेने की धमकी देते है I इन पार्टियो का कुछ वजूद नहीं होता और होता है तो कुए में रहनेवाले मेढक जैसे इनके हाल होते है I लेकिन आज भारत की राजनीती में गठबंधन की ऐसी स्थिति है की कांग्रेस या बीजेपी जैसी पार्टियो को इन छोटी पार्टियो के सामने झुकना पड़ता है और यह पार्टिया इन की मज़बूरी का फायदा उठती है I इनको देश के विकास में कोई रस नहीं होता लेकिन जोड़ तोड़ से होनेवाली कमी एवम बाद में मिलने वाले मलाईदार खाते से मतलब होता है और राष्ट्रीय पक्ष के लायक उम्मीदवार अपनी हिस्सेदारी को नहीं दे पाते I

इसके लिए हम भी जिम्मेदार है I हम राष्ट्रीय आम चुनाव में भी प्रादेशिक मुद्दों को लेकर मतदान करते है जो वाकई में एक खतरनाक स्थिति है I जब भी आम चुनाव में हम वोटिंग करे उस समय हमे राष्ट्रीय स्थिति को ध्यान में रखकर ही मतदान करना चाहिए I ना की प्रादेशिक I

चुनाव आयोग को भी प्रदेश पक्षों को जिस तिस प्रदेश की राजनीती तक ही सिमित रखना चाहिए ताकि वोह राष्ट्रीय राजनीती को न छु सके और राष्ट्रीय राजनीती इन राष्ट्रीय पक्षों के हाथ में रहे I आम चुनाव लड़ने के लिए सिर्फ कांग्रेस,बीजेपी और साम्यवादी पक्ष के उम्मीदवार को ही मंजूरी देनी चाहिए I जिससे जनता का फैसला इन तीनो में से किसी एक को मिले और वोह अपनी खुद की बहुमति से सरकार बनाये जिससे किसी भी फैसले को लेते समय संसद के अन्दर होनेवाले दंगे बांध हो और देश के हित में फैसले हो I

प्रादेशिक पार्टियो को स्थानीय चुनाव एवम विधानसभा चुनाव लड़ने तक ही मंजूरी देनी चाहिए I और में तो कहता हु की इनको विलीनीकरण के माध्यम से ऊपर बताई गयी ३ पार्टियो में विलीनीकरण कर देना चाहिए I जो नहीं मानती उसकी वैधता ख़तम कर देनी चाहिए और उसे गैरकानूनी करार दे देना चाहिए I अगर सच में देश का भला करना है तो हमे इस विषय पर सोचना होगा और बीजेपी या कांग्रेस को अकेले बहुमत दे के जीतना होगा ताकि वोह बिना किसी के सहयोग से सत्ता बनाये और देश के हित के बारे में सोचे I

वरना यह प्रादेशिक पार्टिया ऐसे ही सत्ता में भागीदार बन आये दिन इन राष्ट्रीय पक्षों को तंग करती रहेगी और इनके मनाने के चक्कर में यह रह्स्त्रिया पार्टिया ऐसे ही ५ साल बिता देगी और जनता के लिए कुछ कर नहीं पायेगी I इन प्रादेशिक पक्षों का कोई भरोसा नहीं होता आज कांग्रेस तो कल बीजेपी जो इनको ज्यादा धन एवम तगड़ा प्रधान मंत्रालय देगा वोह उसके साथ हो लेगे फिर भले ही उसके पास एक अंक के ही उम्मेदवार हो और राष्ट्रीय पक्ष को भी इनके समर्थन के लिए इन पक्षों की बात माननी पड़ती है I

अब वक़्त आ गया है की भारत की राजनीतिक स्थिति को सुधरने के लिए इन प्रादेशिक पक्षों के अधिकार क्षेत्र को सिमित किया जाए या फिर इनकी सदस्यता रद करके राष्ट्रीय राजनीती से अलग रखा जाए तभी सच में देश में राजनीतिक माहोल में सुधर होगा और जनता के बारे में सरकार सोच पायेगी वरना ऐसे ही मानने मनाने में ५ साल बीत जायेगे और जनता की स्थिति वही की वही रह जायेगी I सोचिये प्रादेशिक पक्ष सिर्फ फायदे की राजनीती खेलते है न की जनता के हित की I सोचो और अन्य लोगो को भी समजाओ I

जय हिंद

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