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हाय रे यह महंगाई मार गयी महंगाई,
खाना पीना जागना सोना अरे चलना हुआ है महंगा,
हम को मार गयी महंगाई I
इससे छुटकारा पाने को में गया था करने को आत्महत्या,
लेकिन पटरी पे भी लेटने को पैसे मांग रहा था पुलिसवाला,
जब पुछा मैंने उसको की में तो कर रहा हु आत्महत्या,
बोला मुजको महंगाई में मरना भी है अब कहा सस्ता I
खाने को दाने हुए महंगे पिने के पानी भी कहा है सस्ता,
बस अब जान ही है सस्ती जो बिकती नहीं है बाजारों में,
हर जगह मची है लूट जिसकी न कोई है मर्यादा,
नेताजी की निगरानी में मचा है दलालों का बोलबाला,
उनकी जबे भारती जाती न उनको कोई है चिंता,
बराबर बार का बदोबस्त है आम आदमी का निकलने को दिवाला I
खुद की मौत न मर सके तो मर जाएगा महंगाई के बोज से,
आम जनता जितनी कम होगी उतनी ही सेहत अच्छी होगी नेता की,
महंगाई की मार है ऐसी पड़ी की न होश है न कोई जोश,
अरे पकवान की ख्वाहिश कहा है दल रोटी मिले तो वोह भी है नसीब I
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